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किस्सा राजनीति का… रामचंद्र शर्मा

रायगढ़ /


वर्तमान स्थिति में राज्य की राजनीति में कांग्रेस के वापसी का माहौल है राज्य में, लेकिन रायगढ़ में अगर हारेगी तो भ्रष्टाचार के कारण और खराब पुलिसिंग के कारण। पुलिस वाले नेता बन जा रहे जरूरत ही नही कांग्रेसी नेताओं की। कोइ नियंत्रण नहीं, कोई जोर नही, कोई रोक टोक नही, सटोरिए, कोयला माफिया, जुआरी, शराब माफिया , रेत माफिया ये सब किसके इशारे पर काम कर रहे अगर कांग्रेस ये सोचती है कि इसका नुकसान उनको नही होगा तो गलत सोच रहे। पुलिस, राजस्व, निगम या कोई भी विभाग में काम गलत हो या नहीं हो ,सबका असर चुनाव पर पड़ता है। भूपेश बघेल जी इतनी मेहनत कर रहे जिसके कारण राज्य में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है पर स्थानीय स्तर पर व्यवस्था सही नहीं होगी तो नुकसान लोकल विधायकों को होगा। बाकी वही है जो सत्ता शिखर में पहुंच जाता है उसको गलतियां नजर नहीं आती। इस मैसेज को अलार्म वार्निंग समझें। वैसे भाजपा में इतनी टूट है कि जिले में कांग्रेस को आसानी होगी जीतने में, भाजपा का पता ही नहीं चल रहा की चल किसकी रही है, कौन किस गुट में है कौन किसके साथ है और कौन किसके खिलाफ, हर छोटे बड़े नेता का गुट बन गया है जबसे यह हल्ला हुआ है कि नए चेहरे को टिकट मिल सकती है हर नेता खुद को दावेदार मानने लगा है ऐसे में 15 गुट और 25 दावेदार हो गए हैं। सभी एक दूसरे की जड़ काटने में लगे हैं, इसके बावजूद जनता के मूड का भरोसा नहीं इसलिए एक साल बचे हैं कांग्रेसियों को जनता दरबार में अभी से जाना चाहिए ताकि नाराजगी दूर हो सके। अक्सर लोग आलोचना सुनने को तैयार नहीं होते पर निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छबाए। यह कहावत है चाहे तो स्वीकार करें और चाहे तो आलोचक को गालियां दें ये आपके ऊपर है। हम तो बाहर से देख रहे जो दिखेगा वही कहेंगे आप दोस्त समझें या दुश्मन। नजरिए का महत्व है। चापलूस चाहिए या समालोचक शुभचिंतक। ये चुनावी आलोचना कांग्रेस के लिए भी है और भाजपा के लिए भी।
जय राजनीति मय्या की

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