
शहिद किसी भी कौम का बहुमूल्य सरमाया होते हैं, ऊंचे आदर्शों व मूल्यों की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर देना ही शहादत है. शहिद उसे कहते हैं जो उच्च आदर्शों की सत्यता को अपनी जान निछावर कर प्रमाणित करता है. शारीरिक मौत उसके उच्च आदर्शो को कभी समाप्त नहीं कर सकती बल्कि वह उसे अमरत्व प्रदान करने के साथ-साथ भविष्य में आने वाली पीढ़ियों में नवजीवन का संचार भी करती है! जहां गिरता खून शहीदों का तस्वीर बदलती कौमों की, जब शीश कटे तलवारों से तकदीर बदलती कौमों की, शहीदों के खून से मुर्दा कौमों के जीवन में भी क्रांतिकारी बदलाव हो जाते हैं जिस प्रकार खून का दौरा शरीर को जिंदा रखने में सहायक होता है, उसी तरह उच्च आदर्शों के लिए बहा खून भी कौमों को जिंदा रखने में सहायक होता है और कौमों को इंकलाबी मोड़ देने में भी समर्थ होता है.

इतिहासकारों के अनुसार गुरु तेग बहादुर जी की शहादत न केवल मानवता के इतिहास में एक दिशा व दशा के बदलाव का कारण बनी, ऐसी घटना का उदाहरण मानवता अथवा धर्मों के पूरे इतिहास में मिलना कठिन है, जब किसी धर्म की आजादी एवं अस्तित्व पर आए संकट को रोकने हेतु किसी महान शख्सियत ने अपना बलिदान दिया हो. इस महान बलिदान की बदौलत ही आपको( हिंद की चादर) जैसे विशेषण से विभूषित किया जाता है! यह घटना मजलूमों को संत सिपाही बनने को प्रेरित करने वाली महान घटना भी साबित हुई. कालांतर में यह घटना खालसा रूपी अनोखी फौजी की स्थापना का आधार बनी और गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा निर्मित खालसा रूपी आदर्श फौज को भी शहीद होने को हमेशा तैयार व तत्पर रहने की घुट्टी पिलाते हुए गुरुजी ने अपनी फौज में आने वालों से कहा कि जो तौ प्रेम खेलन का चाओ, सिर धर तली गली मोरे आओ,और साथ ही कहा इत मारग पैर धरिजे,सिर दिजे काण ना कीजे, और इतिहास गवाह है की गुरु तेग बहादुर जी द्वारा कायम की हुई शहादत की इस ऊंची परंपरा को खालसा रूपी फौज ने युद्ध में या तो विजय पताका फहरा कर या शहादत का जाम पी कर उस परंपरा को आगे बढ़ाया. कहते हैं जब कोई महान आत्मा धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देकर प्राणों का उत्सर्ग करती है ईश्वर भी प्रसन्न होता है तेग बहादुर के चलत भयो जगत में शोक, है है है सब जग भयो जै जै जै सुरलोक!
सरबजीत सिंह,
रायगढ़





