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हथियारबंद गुंडों से ज्यादा पुलिस की कार्यशैली शहर के लिए खतरनाक….कोतवाली में हथियार से लैस होकर दहशतगर्दी मचाने वालों को सिर्फ समझाईश कोई एफआईआर नही….”शिकारी गैंग” को कौन दे रहा है संरक्षण ..??

रायगढ़..शहर की आबोहवा और लॉ एंड ऑर्डर की जितनी दुर्गति बीते साढ़े चार सालों में देखने को मिली है उतनी इस शहर की जनता ने शायद पहले कभी नहीं देखा।

राजनीतिक संरक्षण में अपराध और अपराधिक तत्वों का बढ़ना कोई नई बात नहीं है लेकिन जब समाज और स्थानीय आवाम खौफजदा माहौल महसूस करने लगे और अपने और अपनों की सुरक्षा को लेकर दहशत में जीने लगे तो मान लेना होगा कि बात अब हद से बहुत ज्यादा आगे बढ़ चुकी हैं जो बिना लोकल पॉलिटिक्स के इंटरेस्ट लिए बिना संभव नहीं है…

बीते साढ़े चार सालों में शहर में घटित यह कोई पहली वारदात नहीं थी जब आम जनता अपनी सुरक्षा को लेकर खौफजदा हुई हो , बीते कुछ सालों में लगातार ऐसे वारदातों ने शहरवासियों को भयभीत किया है चाहे बात एक ही पार्टी के दो राजनीतिक गुटों के बीच हुए तलवार और लठ्ठ बाजी का हो या कोतवाली थाने के भीतर ही दो पक्षों के बीच हुए जोरदार मारपीट का हो या राजनीतिक रसूख हासिल साहेब जादो का खाकी वर्दीधारियों से मारपीट करने का हो या शहर के चार सितारा धारी होटल के प्रांगण में डॉक्टरों के साथ खूनी वारदात का हो या फिर बीच शहर कल रात कोतवाली थाने परिसर और बाहर हुए हथियारबंद युवकों द्वारा आपस में मारपीट और बाद में पूरे क्षेत्र में दहशतगर्दी मचाने का हो … सभी मामलों में एक बात बहुत समान रही और वो थी पुलिस की नकारात्मक कार्यशैली और समझौता वादी रवैय्या।

कल रात हुए वारदात ने तो शहर पुलिस की थोड़ी बहुत जो बची खुची इज्ज़त थी उस पर भी कालिख पोतने का काम किया है क्योंकि मुआमला था भी काफी संवेदनशील।

शहर के दो गुटों के बीच पहले किसी विवाद अथवा पूर्व रंजिश को लेके जोरदार मारपीट होती है और फिर जब दोनों पक्ष बड़ी तादाद में कोतवाली थाने पहुंच कर परस्पर एक दूसरे के खिलाफ आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं तब अचानक थाना प्रभारी के सामने ही दोनों पक्षों के बीच जोरदार विवाद होता है प्रत्यक्षदर्शी जनता नाम न लेने की शर्त पर बताती हैं कि थाने में मौजूद दोनों पक्ष के युवकों के पास घातक हथियार थे जिसे वो बेधड़क चला भी रहें थे जिसकी वजह से ही कोतवाली पुलिस द्वारा सख्त तेवर दिखाते हुए लाठी चार्ज कर उन्हें थाने से बाहर खदेड़ा भी गया लेकिन फिर जो हुआ उसने शहर की पुलिस की कार्यशैली और लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने की संवैधानिक जिम्मेदारी पर सवालिया निशान लगा दिया है

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक थाने परिसर के भीतर और बाहर हथियार लेकर खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाने वाले अराजक तत्वों के खिलाफ आर्म्स एक्ट , बलवा और एनएसए के तहत कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए थी वहां पुलिस द्वारा दोनों पक्षों के बीच समझौता करा मामले को रफा दफा करा दिया गया, जबकि ऐसे मामलों में पुलिस को आर्म्स एक्ट के तहत एफआईआर तो दर्ज करना ही चाहिए था मगर स्थानीय पॉलिटिक्स के समक्ष शहर की पुलिस और पुलिसिया व्यवस्था आज इतनी बेबस और लचर हो गई है कि जिन्हें आज जेल में होना चाहिए था उन्हें जलपान करा शहर की शांति व्यवस्था में सहयोग करने अनुनय विनय किया जा रहा है।

बेशक कल हुए वारदात में कोई जनहानि नहीं हुई हो अथवा ये कहें कि पुलिस शायद तभी कार्यवाही करती जब दो चार लोगों की लाशें मुर्दाघर में पड़ी होती….लेकिन इतना जरूर है कि पुलिस ने अपनी हालिया कार्यशैली से शहर में एक नए अपराधिक गिरोह “शिकारी गैंग”और माहौल को जन्म दे दिया है जो आने वाले भविष्य में शहर की शांत फिज़ा के साथ साथ लॉ एंड ऑर्डर के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती बन सकती है जिसे तब शायद रोक पाना खाकी के भी बस का भी न हो …..??

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