
रायगढ़…रायगढ़ शहर सट्टा खाईवाली के नाम पर पूरे प्रदेश में कुख्यात है।खाईवालों को यहां दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टी का वरदहस्त प्राप्त है।यहां यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा की शहर में सट्टा और मटका बाजार राजनीतिक संरक्षण में ही चल रहा है।और राजनीतिक संरक्षण के जरिए फल फूल रहे इस अवैध कारोबार को पुलिस सींच रही है।समय समय पर दिखावे के लिए एकाध कार्यवाही छोटे मझौले खाईवालों पर पुलिस करती रहती है।लेकिन बड़े खाईवालों तक कानून के हाथ पहुंचने से पहले ही छोटे पड़ जाते हैं
बहरहाल नगर में सट्टा और मटका बाजार किन लोगों की शह पर चल रहा है।यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है।उल्लेखनीय है की तकरीबन 8 माह पहले शहर के एक युवक ने सट्टा खाईवालों के तगादे से परेशान होकर मौत को गले लगा लिया था। उस बखत शहर में यह बात बड़े ही जोर शोर से उठी थी की सट्टा खाईवालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।लेकिन यह बात भी समय के साथ ठंडी पड़ गई।और सब कुछ पहले जैसे ही चलने लगा है।खेलने वाले खेल रहे हैं।और सट्टा खिलवाने वाले पूरे रूवाब के साथ राजनीतिक संरक्षण और पुलिस की सरपरस्ती में अपना काम कर रहे हैं।पुलिस दिखावे के लिए नाममात्र कार्यवाही कर अपना पल्ला झाड़ ले रही है।

पत्रकार ने उठाया है बड़ा सवाल…
इधर शहर के एक वरिष्ठ पत्रकार ने सोशल मीडिया में सवाल उठाया है की शहर के संभ्रांत परिवार के बच्चे सट्टे के दलदल में फंसते जा रहे हैं।और उन्हें सट्टा के मकड़जाल में फंसाने वाले भी संभ्रांत परिवार से जुड़े हुए लोग हैं।जो पहले उन्हें खेलना सिखाते हैं।फिर उन्हें उधार देकर पूरी तरह अपने शिकंजे में कस लेते हैं।जिसके बाद सट्टा खाईवालों के चंगुल में फंसकर शहर के युवा या तो बर्बाद हो रहे हैं या तो अपनी जान गंवा रहे हैं।

पत्रकार ने क्यों लिखा पुलिस से मत रखना कोई उम्मीद..
अगर पुलिसिया कार्यवाही की बात की जाए तो सट्टा के मामले में पुलिस का हाथ कुछ ज्यादा ही तंग रहता है।हां दिखावे की कार्यवाही की बात की जाए तो बात अलग है।शहर में सट्टा का डिपार्टमेंट दो भागों में बंटा हुआ है। एक है मटका बाजार तो दूसरा है।क्रिकेट सट्टा। दोनों ही प्रकार के सट्टा पर अलग अलग लोग काम करते हैं।अगर मटका बाजार की बात की जाए तो दोनों ही राजनीतिक दलों से जुड़े हुए दो बड़े नाम हैं। जिनका मटका बाजार पर एकाधिकार है। एक ही इलाके के होने के बावजूद दोनों खाईवाल अपना एरिया बांटकर बड़े मजे से काम कर रहे हैं।तो क्रिकेट सट्टा से जुड़े तकरीबन आधा दर्जन खाईवाल हैं।जो बड़े पैमाने पर अपना काम कर रहे हैं।बताया जा रहा है की क्रिकेट सट्टा का प्रतिवर्ष कारोबार करोड़ों रुपए का है।
रुपयों की वसूली होती है भाड़े के गुंडों से…
क्रिकेट सट्टा में रुपयों की वसूली महानगरों की तर्ज पर भाड़े के गुंडों के जरिए होती है। हर खाईवाल का अपना अपना गैंग है।ये गैंग वसूले गए रुपयों में से कुछ पर्सेंट अपने पास रखता है।वसूली करने वालों में शहर के कुछ कुख्यात बदमाश शामिल हैं।जो रुपयों के लिए किसी भी हद तक जाकर वसूली करते हैं।
फिलहाल शहर का सट्टा और मटका बाजार तो राजनीतिक संरक्षण और पुलिस की सरमायेदारी में फल फूल रहा है।लेकिन रुपयों के लालच में रोजाना कई घर बर्बाद हो रहे हैं।सोशल मीडिया में पत्रकार द्वारा उठाए गए सवाल को गंभीरता से लेना होगा।अन्यथा सट्टा और मटका में डूबकर और कई जिंदगियां बर्बाद हो जायेगी।





